बंद की बंदिशों से अब तो सबक लें हम ...

*प्रकाश भटनागर*


तो यह तय रहा कि कम से कम मध्यप्रदेश में तो लॉक डाउन समय बढ़ाया ही जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सोमवार की बैठक में अधिकांश मुख्यमंत्रियों ने इसी तरह की राय जाहिर की। जाहिर है कि जब कोविड-19 को लेकर हालात काबू से लगातार बाहर होते ही जा रहे हैं तो फिर ऐसा करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचता है। अलबत्ता यह हो सकता है कि इस मर्तबा के बढ़े हुए समय में लोगों को कुछ रियायतें दे दी जाएं। अब यह मामला तब तक नहीं जमेगा, जब तक कि इस मामले को लेकर स्पष्ट एवं सर्वव्यापी एकमत वाला माहौल नहीं बनेगा।


मसलन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बैठक का सियासी इस्तेमाल करने का प्रयास कर दिया, इस समय इसे गलत ठहराया जाना चाहिए। बनर्जी ने कहा कि  केन्द्र सरकार एक ओर लॉकडाउन लागू करना चाहती है। दूसरी ओर दुकानें फिर से खोलने के लिये आदेश जारी कर रही है। जबकि यह सच का अधूरा पक्ष है। वास्तविकता यह है कि केवल उन दुकानों को खोलने की बात कही गयी है, जिनके बंद रहने से कमोबेश हर आम आदमी परेशान  हो रहा है। ऐसे व्यवसायों से प्रतिबन्ध हटाने का काम भी सशर्त किया जा रहा है। वहां सुरक्षा के सभी मापदंड पूरे करने होंगे। ग्राहकों के बीचआपस में एवं दुकानदार से भी पर्याप्त दूरी बनाये रखने की बातअनिवार्य रूप से अपनाई जाना होगी। पुलिस के जिम्मे यह काम रहेगा कि वह इन व्यवस्थाओं पर सख्ती से अमल करवाए।


 भला, इस व्यवस्था से किसी को क्यों आपत्ति होना चाहिए। आखिर है तो यह हमारी-आपकी सेहत से जुड़ा मामला ही। उस बीमारी से जुड़ा मसला, जिसमें सेकंड के सौवे हिस्से की भी चूक जानलेवा संक्रमण की पुख्ता वजह बन जाती है। संक्रमण के ऐसे खतरे के बावजूद मानव जीवन की अनेक दैनिक जरूरतों की  पूर्ति  के बिना काम नहीं चल सकता, इसलिए ही लॉक डाउन में कुछ छूट देने की बात अब सामने आ रही है। इसका व्यापक तौर पर स्वागत और समर्थन किया जाना चाहिए। कोरोना का विस्तार अब तक नहीं थम सका है और अब तक के अनुभवों के आधार पर इस बात से कोई इंकार  नहीं कर सकता कि  लॉक डाउन के अलावा फिलहाल इस रोग का  मुकाबला करने का और कोई भी कारगर विकल्प मौजूद नहीं है।


 फिर इस प्रक्रिया के विस्तार की जरूरत खुद हम में से ही कई लोगों ने स्थापित कर दी है। लॉक डाउन में मामूली रियायत मिलते ही रायपुर (छत्तीसगढ़) के एक बाजार में हजारों की भीड़ उमड़ पडी। सोशल डिस्टेंसिंग के नियम की धज्जियां उड़ाते हुए। भोपाल में ही कई जगह खाने के पैकेट्स लेने के लिए लोगों द्वारा एक-दूसरे से दूरी बनाये रखने के नियम का पालन न करने की बात सामने आ रही है। यानी यह साफ है कि बीमारी के संचरण की तमाम घटनाओं के बावजूद हम सबक लेने के लिए तैयार नहीं हैं। आज भी हम में से कई लोग मास्क लगाने के नाम पर खानापूर्ति वाला आचरण ही कर रहे हैं। सुरक्षा सम्बन्धी कई जरूरतों को आज भी नजरंदाज किया जा रहा है। माहौल ऐसा है जैसे कि सरकार तथा पुलिस और प्रशासन हमारे स्वास्थ्य की चिंता में दुबले हुए जा रहे हैं और उनकी इस चिंता को हम अपनी आजादी में खलल मान चुके हैं। लॉक डाउन की शुरूआत से लेकर अब तक की अवधि में यदि सभी ने अपने-अपने स्तर पर इसका ईमानदारी से पालन किया होता तो तय मानिए कि अब तक हम इस बंद की बंदिशों से बाहर आने के करीब होते। आखिर देश के कुछ छोटे राज्यों में ऐसा हुआ भी है। पर हम में से अधिकांश ने ऐसा नहीं किया। परिणाम यह कि कोरोना के मामले बढ़ गए और उसी अनुपात में लॉक डाउन की मियाद बढ़ाना भी बहुत बड़ी मजबूरी हो गयी है।