भोपाल *राधेश्याम दांगी/बिच्छू रोज़ाना*
कुछ माह बाद मध्यप्रदेश में दो दर्जन विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस व भाजपा दोनों का राजनैतिक भविष्य का फैसला होना है। यही वजह है कि दोनों ही प्रमुख दल अभी से इन सीटों पर जीत के लिए पुख्ता रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। खास बात यह है कि जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें से अधिकांश सीटें ग्वालियर-चंबल अंचल के तहत आती हैं। यह वो अंचल है , जहां पर पूर्व कांग्रेस नेता और अब भाजपाई ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव माना जाता है। उनके अपने समर्थक विधायकों के साथ दलबदल करने की वजह से ही कांग्रेस को डेढ़ दशक बाद मिली प्रदेश की सत्ता से हाथ धोना पड़ रहा है। इसलिए अब सिंधिया को कांग्रेस विभीषण मानकर चल रही है। यही वजह है कि अब कांग्रेस नेताओं के निशाने पर भाजपा से अधिक सिंधिया हैं। उन्हें टक्कर देने और उनके ही गढ़ में मात देने के लिए कांग्रेस अब इसी अंचल के किसी नेता को उनके समकक्ष खड़ा करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसी वजह से माना जा रहा है कि पार्टी नेता प्रतिपक्ष पद पर अंचल के दिग्गज नेता और अजेय विधायक गोङ्क्षवद सिंह को यह पद सौंप सकती है। गौरतलब है कि जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं उसमें से कांग्रेस छोडऩे वाले 15 पूर्व विधायकों के क्षेत्र इसी अंचल मे है। वहीं, जौरा के विधायक बनवारीलाल शर्मा तथा आगर मालवा के मनोहर ऊंटवाल के निधन से रिक्त हुई दो सीटों में जौरा सीट भी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की है। इस तरह ग्वालियर-चंबल संभाग में 16 सीटों पर उप चुनाव होना है जो कोरोना संकट के बाद इस साल के अंत तक होने की संभावना है।
*गोविंद या केपी में से हो सकता है कोई*
भिंड की लहार विधानसभा सीट से लगातार सात बार चुनाव जीतने वाले डॉ. गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की संभावना जताई जा रही है। उनका नाम भी कुछ नेताओं द्वारा आगे किया जा रहा है। वहीं, शिवपुरी के पिछोर विधानसभा सीट से छठवीं बार विधायक बने केपी सिंह भी इसी क्षेत्र से आते हैं। पिछोर सिंधिया के संसदीय क्षेत्र गुना-शिवपुरी का हिस्सा है जहां से वे हाल ही में चुनाव हारे हैं। केपी सिंह की एकमात्र ऐसी विधानसभा सीट थी जहां से सिंधिया को बढ़त मिली थी।
*सिंधिया विरोधी माने जाते दोनों नेता*
सिंधिया जब कांग्रेस में थे तो डॉ. गोविंद सिंह और केपी सिंह को वे अपना विरोधी ही मानते रहे क्योंकि कहीं न कहीं दोनों नेताओं की दिग्विजय सिंह से नजदीकी रही है। गोविंद सिंह के खिलाफ तो कांग्रेस सरकार बनने के बाद सिंधिया समर्थक कुछ विधायकों ने बिगुल भी बजाया था जो गोविंद सिंह-सिंधिया के बीच मुलाकात से शांत हुआ था। केपी सिंह संसदीय क्षेत्र में विधानसभा क्षेत्र के आने पर ही सिंधिया के साथ दिखाई देते थे। केपी सिंह मंत्री नहीं बनाए जाने से कुछ समय तक नाराज रहे लेकिन इन दिनों प्रदेश नेतृत्व के करीबी बताए जा रहे हैं।