कोरोना को लेकर आज ICMR ने बहुत बड़ा बयान दिया है जो इस रोग पर हमारी अब तक बनी समझ पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर देता है आज ICMR ने पहली बार सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि 'भारत में 80 फ़ीसदी पॉज़िटिव मामलों में कोई लक्षण नहीं है या फिर बिल्कुल मामूली लक्षण है' यानी इस रोग के उन्हें लक्षण ही उत्पन्न नही होते उन्हें शुरुआती 10 दिन में सर्दी भी नहीं होती. होती भी है, तो ज्यादा बढ़ती नहीं. फीवर नहीं आता. आता भी है, तो तेज़ नहीं.
अब दो शब्दों को बहुत ध्यान से समझिए
पहला है #एसिम्प्टमैटिक यानी लक्षण विहीन या लक्षणरहित,
कोरोना के लक्षण अमूमन पांच से 10 दिन के अंदर दिख जाते हैं, लेकिन एसिम्प्टमैटिक व्यक्ति के साथ ऐसा नही होता मतलब न खांसी, न छींक, न बुखार पुरी तरह स्वस्थ लगने वाला व्यक्ति भी एसिम्प्टमैटिक हो सकता है
ओर दूसरा है #साइलेंट_कैरियर
साइलेंट कैरियर यानी वह एसिम्प्टमैटिक व्यक्ति जिसे खुद नहीं पता होता कि उनके शरीर में कोरोना है. वो कई लोगों के कॉन्टैक्ट में आते हैं.ओर अनजाने में ही उसके शरीर से कइयों के शरीर तक वायरस पहुंच जाता है. ओर जिस किसी का इम्यून सिस्टम स्ट्रॉन्ग नही है वह व्यक्ति उससे संपर्क में आकर बीमार पड़ सकता है
यह एक ऐसी बाते है जिसके बारे में हम अब तक जानबूझकर अनजान बने हुए थे हालांकि विश्व के कई बड़े देश बहुत दिनों से यह बात बोल रहे थे
अब जैसा कि भारत का कोरोना से लड़ने वाला सबसे प्रमुख सरकारी संस्थान ICMR ही कह रहा है कि भारत में 80 फ़ीसदी पॉज़िटिव पाए गए व्यक्ति लगभग एसिम्प्टमैटिक थे तो हम बार बार यह कैसे कह देते हैं कि ये व्यक्ति वायरस फैला रहा था?.........
इस नए तथ्य #एसिम्प्टमैटिक से भारत की टेस्टिंग प्रक्रिया पर भी बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या हमारी सिर्फ लक्षण मिलने पर टेस्ट करने की पॉलिसी सही है?......
अभी तक सरकार लक्षण को आधार बना कर सर्वे कर रही है ,अभी हम लक्षण को देखकर, या लक्षण वाले संक्रमित लोगों को खोज कर, लक्षण मिलने पर मरीज के घरवालों पड़ोसियों के टेस्ट कर रहे हैं हम उनके इलाको- बस्तियों को अलग-थलग कर के हॉटस्पॉट बना कर, पॉजिटिव मरीज को क्वरैंटाइन में रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं
जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, जर्मनी, सिंगापुर, ताईवान आदि जो देश है उनकी एप्रोच है कि मरीज चाहे सिम्प्टमैटिक या एसिम्प्टमैटिक सबके टेस्ट होने चाहिए अस्पताल में आए मरीज को नहीं, बल्कि आम आबादी के बीच टेस्ट करो।
भारत यह तो गलती कर ही रहा है बल्कि वह उससे भी एक ओर बड़ी गलती कर रहा है देश का स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले कुछ दिन से यह कहना शुरु कर दिया है कि यह जिला या क्षेत्र कोरोना मुक्त है
इसके बनिस्बत आप विश्व मे देखे तो चाहे जर्मनी की सरकार हो या सिंगापुर की या न्यूयॉर्क का गवर्नर कोई यह नहीं कह रहा है कि हम, हमारा राज्य या हमारे जिले कोरोना मुक्त हो गए। वह अपने यहाँ सघन रूप से टेस्टिंग अभियान चला रहे है जबकि उनके यहाँ कोरोना के केस लगातार कम हो रहे हैं उसके बावजूद भी वह टेस्टिंग की संख्या बढाते जा रहे है......…
यह तो हुई सरकार की बात जिसकी हम अक्सर आलोचना करते हैं ओर करते रहेंगे.....लेकिन अब एक कड़वी हकीकत समझ लीजिए इस वायरस को खत्म करने की बात मूर्खता है अब हमें इसके साथ ही जीना होगा एसिम्प्टमैटिक ट्रांसमिशन की हकीकत को स्वीकार करने का अर्थ भी यही है कि दुनिया में फैलाव रोक सकना संभव ही नहीं है।