कोरोना,सब्र और रमज़ान !

*हिदायत खान, इंदौर*


रमजान बस आ ही गए हैं,पर कोरोना के असर में हैं,इसलिए कई तरह के सवाल हैं। प्रशासन सतर्क है,फिक्रमंद है, लेकिन लॉकडाउन में लोगों ने कोरोना देखा है, मौत देखी हैं, उससे आ रही परेशानियां से रूबरू हुए हैं।इसलिए कोई मसला होगा,लगता नहीं है।कहीं ना कहीं शुरुआती लापरवाही के बाद, जिम्मेदारी दिखने लगी है और इसकी ज़रूरत भी है। सब तरफ से जो कोशिशें हुई हैं,असर दिखा रही हैं। कोई मस्जिद तक जाएगा,इस पर सोचना भी फ़िज़ूल है।सबने मन बना रखा है, घर में रहेंगे, इबादत करेंगे,रोज़े रखेंगे,तराबीह पढ़ेंगे, लेकिन बाहर नहीं निकलेंगे।इस पर बहस होना भी नहीं चाहिए। दूसरा मसला रमजान की ज़रूरतें हैं, जो अहम हैं।उसके लिए कोशिशें हो रही हैं,लेकिन न तो मांग होना चाहिए,न शोर,न ही कोई गुजारिश,क्योंकि रोज़ा आपकी ज़िम्मेदारी है,किसी पर अहसान नही।न ही इसके नाम पर इमोशनल ब्लैकमेलिंग की गुंजाइश है।ख़ालिस अल्लाह की इबादत है और रमज़ान का मतलब ही तैयारी है,सब्र है और मुश्किल हालात डटे रहना है। सब्र करते हैं और अपने ऊपर खाना-पानी हराम कर लेते हैं।इस बार इसके साथ घर से बाहर निकलने को भी हराम करना होगा। पहली बार हमारा ऐसे रमज़ान से सामना होने जा रहा है, जिसकी तैयारी हम बरसों से कर रहे हैं।अब उसका मुज़ाहिरा करना है।अभी तक रमज़ान में खूब पकवान खाएं हैं,बेहतरीन फल से लेकर लज़ीज़ खाना दस्तरख़ान पर रहा है।इस बार हालात जुदा हैं।ज़रूरी नही है,वही सब हमारे सामने हो,जो हर बार रहता आया है।अगर बेचैनी दिखाई तो हवस में तब्दील हो जाएगी,रोज़े का मक़सद ख़त्म हो जाएगा।अल्लाह जो इंतजाम कर दे, उस पर शुक्र करें और बताएं, रोज़े का मतलब ही सब्र है।सिर्फ दिन भर ही नहीं करेंगे, पूरे महीने करेंगे और जैसा भी होगा, उससे निपट लेंगे, लेकिन हंगामा नहीं होगा, बेचैनी नहीं होगी। तरबूज़, खजूर, रूहअफ़ज़ा,पापड़,-भजिए,गोश्त का मतलब रमज़ान नही है, जो हमारे पास है, उसी से काम चलाएंगे और बताएंगे इन्हीं हालात से निपटने के लिए रोज़े रखे जाते हैं।'जग्गा' बोला - आप इम्तिहान की तराजू में बैठ गए हैं।याद रखिए, कोई शिकवा नहीं, कोई डिमांड नहीं और ना ही घर से बाहर निकलना है। जो होगा इंशाल्लाह अच्छा होगा और सब्र ही हथियार है।रमज़ान मुबारक़...!