19 अप्रैल, 2020, इंदौर (मध्य प्रदेश)।
आज 19 अप्रैल, 2020 को इंदौर के संभागायुक्त को एक ज्ञापन सी.पी.आई., सी.पी.एम., एस.यू.सी.
आई., समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी एवं सोशलिस्ट पार्टी सोशल मीडिया द्वारा द्वारा भेजा गया।
*इंदौर संभागायुक्त को दिया गया ज्ञापन-*
श्रीमान आकाश त्रिपाठी, 19 अप्रैल, 2020
संभागायुक्त
संभाग इंदौर (मध्य प्रदेश).
विषय : लॉकडाउन के दौरान श्रमिक वर्ग को हो रही समस्याओं के निराकरण तथा सहयोग हेतु सुझाव ।
संभागायुक्त महोदय,
इंदौर ज़िले में कोरोना प्रभावितों और मृतकों की संख्या में लगातार इजाफ़ा होता जा रहा है। इतने दिनों, बल्कि पिछले 4 सप्ताह से ही हम देख रहे हैं कि प्रशासन इस अभूतपूर्व संकट के दौर में अपनी ओर से लोगों को आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति और जन स्वास्थ्य की रक्षा करने का काफी साहस के साथ प्रयास कर रहा है। लेकिन इस सच को भी हमें स्वीकारना चाहिए कि नयी परिस्थितियों में बहुत सारा ज़रूरी काम नहीं भी पूरा हो सका है। प्रशासन विशिष्ट परिस्थितियों में विशिष्ट क्षमता के साथ काम कर रहा है किन्तु कोविड 19 की इस आकस्मिक महाआपदा के सामने हमारी तैयारियाँ नाकाफी हैं। जिस तरह जगह-जगह से कोरोना पॉजिटिव पाए गए मरीजों की संख्या के समाचार मिल रहे हैं, या जो समाचार मास्क, पीपीई किट्स या दस्ताने और वेन्टीलेटरों की उपलब्धता के मिल रहे हैं, डॉक्टरों, नर्सों या मेडिकल स्टाफ की उपलब्धता या उनमे पाए जाने वाले पॉजिटिव संक्रमण को लेकर स्थितियाँ ख़बरों में आ रही हैं, वो बहुत आश्वस्ति नहीं पैदा करतीं हैं।
1. इसे लेकर हमारा सुझाव है कि आप शहर में मौजूद दानदाता संस्थाओं के साथ ही ऐसे संगठनों और संस्थाओं का सहयोग भी लें जो आपदा प्रबंधन में कुछ अनुभव रखते हैं और साथ ही जिनकी सामाजिक प्रतिबद्धता असंदिग्ध है। हम यह भी आपसे निवेदन करना चाहते हैं कि प्रशासन अपनी योजनाओं और उनके क्रियान्वयन को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों को भी विश्वास में ले और लोगों को समझाने में उनका भी सहयोग ले। अनेक ऐसे कार्य टेलीकांफ्रेंसिंग के ज़रिये किये ही जा रहे हैं तो राजनीतिक दलों की भी इस महामारी से निपटने में कोई भूमिका सोची जा सकती है। पुलिस की तुलना में जनता का राजनीतिक नेतृत्व करने वाले लोग सोशल डिस्टेंसिंग को लोगों को समझा-बुझाकर बेहतर तरह से मनवा सकते थे। यह काम अभी भी किया जा सकता है बशर्ते प्रशासन अपनी सीमाओं को समझते हुए लोकतंत्र की अन्य पहरेदार संस्थाओं का भी सहयोग लेना चाहें।
2. इंदौर शहर में लॉकडाउन के चलते स्वास्थ्य के मामले में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अत्यंत दुःखद एवं स्तब्ध करने वाली घटनाएं पिछले दिनों घटित हुईं हैं। एक गर्भवती महिला की इलाज ना मिलने के कारण मृत्यु हुई, एक व्यक्ति की अस्पताल के चक्कर काटने में और एंबुलेंस उपलब्ध ना होने से स्कूटी पर ही मौत हो गई एक और इसी प्रकार की घटना खंडवा जिले में सामने आई है। ये घटनाएं शासन व प्रशासन की स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल देती हैं। शासन को चाहिए कि सभी जिलों के अस्पतालों-दवाखानों के डॉक्टरों व स्टाफ को पूरे सुरक्षा साधन उपलब्ध कराते हुए निर्देश दिए जाएं कि सभी मरीजों का इलाज किया जाए तथा एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल लाने ले जाने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध कराई जाए इलाज करने से मना किसी भी हालत में ना किया जाए। इस बावत कुछ घोषणाएँ दिनांक 17 अप्रैल को भी की गईं हैं और निजी अस्पतालों को ऐसी चेतावनी अनेक दिनों से दी जा रही है लेकिन उसका असर अभी तक देखने को मिला नहीं है। अनेक जगहों से ये शिकायतें आ रही हैं कि अभी भी ग्रीन अस्पताल नए मरीजों को कोरोना के डर से लेने से घबरा रहे हैं। इस पर दैनिक भास्कर ने एक बड़ी स्टोरी भी की थी। लॉक डाउन के दौरान सभी लोग घरों में बंद हैं। ऐसी स्थिति में प्रत्येक घर में पहुँचकर एंटीबॉडीज़ जाँच पर जल्द से जल्द अमल होना चाहिए।
3. खाद्यान्न और भोजन के मामले में प्रशासन की व्यवस्था लोगों की आवश्यकता पूरी नहीं कर पा रही है एवं अनेक लोगों को अनेक दिनों से भूखा रहना पड़ रहा है। हमारी आपको और आपके माध्यम से प्रदेश के मुखिया को सलाह है कि सभी लोगों तक खाद्यान्न पहुंचाने के लिए राजनीतिक-सामाजिक संगठनों का सहयोग लिया जाए। सभी परिवारों को 50 किलो गेहूं या चावल तथा अन्य आवश्यक खाद्यान्न व दाल, नमक, शक्कर आदि की निश्चित मात्रा मुफ़्त उपलब्ध कराए जाएँ। दिहाड़ी करने वाले मजदूरों को कम से कम रू. 5000 की सहायता उपलब्ध कराई जाए। जो प्रवासी मजदूर अपने परिवारों से दूर शहरी केंद्रों में फँसे हुए हैं और गाँव जाना चाहते है, उनके गाँव जाने की व्यवस्था कराएँ तथा किसानों को उनकी उपज का 150% मूल्य दिया जाये।
4. इंदौर में यह देखा जा रहा है कि एक समुदाय विशेष को कोरोना फ़ैलाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। इस तरह से आपदा का भी साम्प्रदायिकरण किया जा रहा है। क्या ट्रम्प महोदय को अपने देश मंप फैलते जा रहे संक्रमण को ध्यान में रखते हुए भारत दौरे का फैसला रद्द नहीं करना चाहिए था? क्या भारत सरकार को ट्रम्प महोदय का दौरा निलंबित नहीं करना चाहिए था? क्या अयोध्या में मूर्ति प्रतिष्ठा और अन्य अवसरों पर किये गए ऐसे जमावड़ों को रोका नहीं जाना चाहिए था? आज दिनांक 17 अप्रैल 2020 को पुनः अख़बारों में उल्लेखित है कि कर्नाटक के कलबुर्गी नगर में किसी मेले में हज़ारों लोग जमा हुए और कर्नाटक में ही किसी मंत्री के लड़के की शादी में भी सैकड़ों लोगों ने नाच-गाने किये। इन सब घटनाओं को व्यक्तिगत या अपवाद स्वरुप रखा जाना और एक तब्लीगी की घटना को पूरे एक समुदाय के साथ जोड़ना क्या तार्किक कहा जा सकता है? ऐसे वक़्त में जब पूरी दुनिया में इंसानियत पर नज़र गड़ाए इस महामारी से सभी लोगों को देश-धर्म-जाति से ऊपर उठकर इसका वैज्ञानिक समाधान खोजना ज़रूरी है, ऐसे लोगों के खिलाफ प्रशासन को सख्त कदम उठाने चाहिए जो इस वक़्त में भी हिन्दू-मुस्लिम का सांप्रदायिक गन्दा खेल खेलना चाहते हैं। इस पर आपका तुरंत मज़बूत कदम उठाना इसलिए भी ज़रूरी है कि आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से जो घर-घर घूमकर स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया जा रहा है, उसमे सर्वे करने वाली कुछ महिलाओं ने हिन्दू लोगों को कहा है कि वे मुसलमानों से दूर रहें। कृपया अपने मातहतों को समझाइये कि ऐसी सतही और नफ़रत के वायरस फैलने वाली बातें न करें। इस बाबत भी हम आपको यह सुझाव देना चाहते हैं कि इंदौर जैसे शहर में बहुत बेहतर और उच्च मानवीय विचारों वाले प्रखर विचारक मौजूद हैं, उनका उपयोग किया जाना चाहिए। अगर रोज़ इंसानियत पर उनके विचार निश्चित समय पर प्रशासन लोगों के बीच आकाशवाणी बुलेटिन की शक्ल में पहुँचाने की व्यवस्था करे तो घरों में क़ैद लोगों का मनोबल भी बढ़ेगा और उनके समय का सदुपयोग उनकी मेधा को बढ़ाने में किया जा सकेगा।
5. केंद्र तथा राज्य, दोनों ही सरकारों ने घोषणा की है कि मज़दूरों के भुगतान न रोके जाएँ। किन्तु घोषणाओं से इतर सच ये है कि अनेक जगहों पर अनेक मज़दूरों को उनके भुगतान नहीं हुए हैं। लॉकडाउन के बाद जब कारखाने और काम फिर चालू होंगे, तब मज़दूरों को इन्हीं मालिकों से काम मांगने आना पड़ेगा - यह सोचकर अनेक मज़दूर रिपोर्ट भी नहीं लिखवा रहे हैं। कुछ जगहों पर यह भी वास्तविकता है कि छोटे व्यवसायी या छोटे कारखानेदारों के पास इतना पैसा वाकई नहीं है कि उससे मज़दूरों का भुगतान कर सकें। ऐसे में हमारा प्रस्ताव है कि छोटे कारखानेदारों और व्यवसायियों के पास कार्यरत मज़दूरों के अविलम्ब भुगतान का ज़िम्मा सरकार खुद अपने कन्धों पर ले।
6. श्रीमान कलेक्टर महोदय ने कल मीडिया को दिए अपने एक बयान में यह भी कहा कि इंदौर में कोविड-19 संक्रमण के प्रकरण अधिक होने का एक कारण यह भी है कि हवाईजहाज से बाहर से आये कुछ लोग इंदौर में चल रहे आंदोलनों में शामिल हुए। उनकी वजह से भी कोरोना वायरस फैला। www.covid19india.org पर दिए गए आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में, और उसमें भी खासतौर पर इंदौर में कोविड-19 संक्रमित रोगियों की संख्या में उछाल 3 अप्रैल 2020 के बाद ही आया है। लॉकडाऊन (24 मार्च, 2020) के पहले तक देशभर की तर्ज पर सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में इंदौर में भी धरने प्रदर्शन चल रहे थे। किन्तु लॉकडाउन के पहले से ही धरने बंद कर दिए गए थे। अब यदि शासन के ही बयान को लें तो अधिकतम मामलों में औसत 5 दिन का incubation period पाया गया है। अगर इन आंदोलनों या धरनों से कोविड-19 संक्रमण फैला होता तो उसके लक्षण 29 मार्च तक दिखने चाहिए थे जबकि ऐसा हुआ 3 अप्रैल के बाद है। हमारा निवेदन है कि श्रीमान कलेक्टर महोदय के पास यदि इस बात का कोई ठोस प्रमाण हो तो उसे सार्वजानिक करें अन्यथा दूसरों पर निराधार आरोप न लगाएं। संक्रमित होना कोई अपराधी होना नहीं है। अगर किसी को भी यह संक्रमण लगा है तो जानबूझकर उसने नहीं लगाया है। संक्रमित व्यक्तियों के साथ पुलिस और प्रशासन के व्यव्हार को और बेहतर बनाने की कोशिश की जाये तो स्थितियां अधिक आसानी से काबू में आएँगी।
आप से आशा है कि आप मौके की नजाकत को देखते हुए शीघ्रातिशीघ्र कदम उठाएंगे।
निवेदन
डॉ. जया मेहता, अर्थशास्त्री
विनीत तिवारी, (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी)
कैलाश लिम्बोदिया, (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी)
प्रमोद नामदेव (सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इंडिया)
एस. के. दुबे (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी)
रूद्रपाल यादव (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी)
जयप्रकाश (आम आदमी पार्टी)
रामस्वरूप मंत्री (सोशलिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया)
अरुण चौहान (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी)
रामबाबू अग्रवाल (समाजवादी पार्टी)
सारिका श्रीवास्तव, (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी)
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