समीर शर्मा इंदौर ,
देखता हूँ मैं एक महामारी ने दस्तक दी और मेरा सुन्दर शहर, सबसे स्वच्छ शहर पूरे मीडिया जगत में देश के सबसे तेजी से बढ़ते महामारी के एपिसेंटर के रूप में पूरे देश में बदनाम हो गया |
*जनसंख्या के हिसाब से देखें तो आज 12 अप्रैल को २98 पोजिटिव केसेस के साथ इंदौर प्रति 6711 लोगों पर एक पॉजिटिव मरीज के आंकड़े पर खडा है जो डरा देने वाला है !*
*१२० से अधिक एपिसेंटर/ कंटेन्मेंट ईलाके* हैं तो तो क्या इसमें प्रशासन की गलती है या राज्य सरकार की , नागरिकों की या पूरे लचर पड़े सामजिक ढाँचे की पोल खुली है , आईये इसका पोस्टमार्टम करें ...
तारीख २३ मार्च से लॉक डाउन शुरू हुआ , इंदौर शहर में सोशल मीडिया , अखबार ने खबरें फैला दीं की कोरोना नामक एक महामारी दस्तक दे रही है पर क्या इंदौर इसके लिए तैयार था ?
19.9 लाख की जनसँख्या (२०११ के हिसाब से ) और लगभग २५ लाख की वास्तविक संख्या वाला शहर अपने ज़ज्बे के लिए जाना जाता था ...परन्तु इस महामारी के चलते यह देश में कोरोना का इपिसेंटर बन गया , क्यूँ ?
*क्या स्मार्ट सिटी इंदौर सोसाइटी के एक मॉडल के नाते फेल हो गया ?*
*सभी जिम्मेदार है सिर्फ प्रशासन नहीं*
पोलिस , प्रशासन/नगरनिगम, जनता और जनप्रतिनिधि ये सब जिम्मेदार भी है और उत्तरदायी भी हैं लेकिन ये ही *इसके हीरोज़ भी बन सकते हैं* |
*क्यों हुआ ये कम्युनिटी कोलाप्स ?*
आज इंदौर बंद पडा है , न राशन है, न सब्जी , न दवाई न दूध और एक भयावह अनिश्चित्तता ..
एक विशेष वर्ग और इलाकों के लोगों से शुरू हुए इस महामारी ने दंड दिया पूरे २५ लाख लोगों को , पत्थर फेकने वाले उंगली पे गिने जा सकते हैं, थूकने वाले, को-ओपरेट न करने वाले कितने हैं ?
कुछ इलाके ही न ... बाकी ९५% शहर अपने घरों में बंद है !
महामारी और आपदा नियंत्रण और अन्य अभियानो में बड़ा अंतर है शायद चूक यहीं हुई हमसे , जो काम सुई का था उसकी जगह तलवार इस्तेमाल में लाइ गई | *क्यूंकि यह मामला इंसानों का है , उनकी जान ओ जिंदगी का , और प्रशासन को इसे संवेदनशीलता के टॉवल लपेटते हुए अनुशासन के डंडे से संभालना था |* और जब भी परिवार में सख्ती की जाती है तो एक बेड कॉप होता है और एक गुड कॉप , यहाँ पर गुड कॉप गायब है !
*इंदौर के कोरोना इपिसेंटर बनने के ये मुख्य ५ कारण और उनके समाधान*
*समस्या नंबर १ जन प्रतिनिधि/ नेता गायब हैं* -
क्या आपने अपने पार्षद या विधायक को देखा है इन दिनों? *कहाँ गए वो लोग* ?
यहाँ बड़ी एबसेंट लगी इंदौर के जन प्रतिनिधियों की, हर पार्टी के नेताओं की अनुपस्थिति रही ...
छुटभैये नेता , पार्षद, विधायक , पार्टियों के अध्यक्ष जनता के बीच में नहीं है , वोट मांगने वाते हैं तो देखिये उन्हें उनके कार्यकर्ताओं से लेकर शहर अध्यक्ष तक आपकी तरफ मुस्कुराता था जैसे आपका सबसे सच्चा दोस्त हो , पर ये सब ग्राउंड से गायब हैं , *इनकी नैतिक जिम्मेवारी थी कि ये कलेक्टर , प्रशासन , नगरनिगम के साथ खड़े होते और मदद करते सोशल ब्रिज बनाने में तो शायद यह मामले इतने नहीं बढ़ते* न कोरोना के न ही झगड़ों और पत्थरबाजी के. ये सभी पटल से गायब हैं और यह काबिल ए बर्दाश्त नहीं!
... ..इंदौर भूलेगा नहीं इन राजनीति की रोटियों पर पलने वाले नेताओं को और यदि इस जनता ज़रा भी ये बात समझ में आगे तो आप देखिएगा अगला चुनाव , इनकी हिम्मत नहीं होगी मतदाता के दरवाजे पर जाने की . जनता को इनसे सवाल नहीं अब आरोप लगाने चाहिये| शायद अगला चुनाव अलग तरह ले लोग लड़ें और जीतें , जैसा कि *प्रधानमन्त्री कहते हैं हमें राज करने के लिए नहीं जनता ने सेवा के लिए चुना है , तो कहाँ है इंदौर के सेवक ?*
*समाधान :*- सभी पूर्व पार्षदों , विधायकों को प्रशासन, कलेक्टर के साथ आगे रहकर साथ देने के लिए आना चाहिए और अपने अपने वार्ड्स / बूथ्स और विधानसभा की जिम्मेदारी संभल लेनी चाहिए थी !
आज भोपाल से १३ से अधिक अधिकारी बुलाये गए उसकी जरूरत नहीं होती और *कलेक्टर और कमिश्नर साहब बेहद आसानी से स्थितयों पर काबू कर चुके होते* ! हमारे कलेक्टर तो इन सभी लोगो के साथ काम कर चुके है और उनकी सामर्थ्य जानते हैं! कलेक्टर की प्लानिंग का इन जनप्रतिनिधियों का इस आपदा की घडी में अपनी टीम के माध्यम से कार्यपालन करना ही हमारी जीत बन सकता है अब भी ! *और इन्हें (जनप्रतिनिधियों ) इसका राजनैतिक लाभ मिलता सो अलग*....
*समस्या नंबर २ डिजास्टर मैनेजमेंट नाम पर हम तैयार ही नही थे*;-
स्मार्ट सिटी इंदौर , डिजास्टर मैनेजमेंट के नाम पर पूरी तरह फेल रही ! हमारे पास कुछ भी नहीं दोस्तों , कुछ भी नहीं है .... हमने सिस्टम्स नहीं बनाये , सिर्फ बस स्टेशन , एक्रेलिक के फसाड , सुपर फिशियल लाइट्स है , प्रशासन का सिस्टम डम्ब ही रहा ...
हमारे पास कोई सिस्टम नहीं है , न हमारे पास कोई डिजास्टर मैनेजमेंट प्लानिंग है , न पॉलिसी, न संवाद के लिए प्लेटफ़ॉर्म , न विभागों के बीच तालमेल, न मैपिंग , न वार्ड वाइज समितियां , न संस्थाओं का समन्वयन ...
हमारे पास न अच्छे सरकारी हॉस्पिटल हैं न पूरी संख्या में डॉक्टर्स , न बायो पोलिस है न , सिटीजन फीडबैक सिस्टम , न ग्रीवियेंस सेल , कॉल सेंटर कुछ भी नहीं! हमारे पास वोलेंटियर्स , ट्रेंड रिसोर्सेस , ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट , एम्पैनल्ड संगठन नहीं हैं !
*सबसे बड़ी बात कुछ एक समूहों के अलावा प्रशासन तक पहुँचाने की अप्र्रोच रोड में बहुतेरे ब्लॉक्स हैं*| नहीं तो यहाँ के स्टार्टअप्स , सस्टेनेबिलिटी पर काम करने वाले लोग और मैनेजमेंट के विशेषज्ञ पूरी दुनिया में जाने जा रहे हैं!
*कुल मिलाकर लाईट पोल्स, डस्टबिन्स और एप्स स्मार्ट हैं , नागरिक और प्रशासन नहीं !*
*समाधान*–
*आज हर नागरिक की एक समस्या है की कोई फोन नहीं उठा रहा , हमेशा इंगेज मिलता |* यह बड़ी समस्या और निराशा में बदल रहा है इससे विशवास डगमगा जाता है|
शहर में बहुत सारे कॉल सेंटर कर्यरत हैं , वे अभी बंद भी हैं , उनके साथ कोलोबरेट कर जो सिर्फ एक नबर के एंगेज होने की समस्या आ रही है उससे निजात पाई जा सकती थी |
सिर्फ १ या दो दिन की ट्रेनिंग से ये निजी कॉल सेंटर्स अधिग्रहित करके जनता का मोरल अप कर सकते हैं और सही जानकारी और मदद पहुचने में शासन की मदद कर सकते थे !
*इससे फेक न्यूज़ और अफवाहों को रोकने में मदद मिलती*!
ऐसे में कुछ आपदा के अंतर्राष्टीय सिस्टम्स को
तत्काल सॉफ्टवेयर , एक्सिस्टिंग सोशल नेटवर्क के माध्यम से हैंडल करना था | समाज के साथ संवाद बेहद ज़रूरी था ! यह सब इंदौर में उपलब्ध है !
*समस्या नंबर ३ – जीवन रेखा बंद हुई राशन , दूध , सब्जियां दवाई सप्लाई ठप्प*:-
यदि किसी शहर में नागरिकों का मनोबल और मानसिक स्थिति को संतुलन में रखना है और प्रशासन को उनसे सहयोग चाहिए तो नागरिकों की बेसिक डेली नीड्स के साथ आप समझौता नहीं कर सकते | किराना सप्लाई परेशानी से जूझ रहा है, नगर निगम इंदौर , लाखो ऑर्डर्स उनके पास है , हज़ारों पेंडिंग और *अथक काम करने के बाद भी शहर में भावना यह है कि प्रशासन फेल हो गया है क्यूंकि व्यवस्था पूरी तरह से अनियोजित है* इसे सुनियोजित करना होगा |
प्रशासन , जिसे प्लानिंग करनी थी वो क्रियान्वयन यानि एग्ज़िक्युशन में उतर गया है जो गलत है!
*समाधान २२०० बूथ्स का नेटवर्क*
प्रशासन , जनप्रतिनिधियों को आपस में मिलकर सामाजिक संगठनो, NGO, वोलेंटियर्स और पार्टी कार्यकर्ता के साथ संपर्क कर पूरे २२०० बूथ्स जिसे वे चुनाव के वक्त रातोंरात बना लेते हैं बनाकर इसे मैनेज कर लेना था |
*आज अगर ये २२०० बूथ्स अपने साथ युवाओं , सामाजिक संगठनो के वालेंटियर और निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर्स के साथ उसी एरिया के राशन और सब्जी वाले के साथ यह व्यवस्था जमा देते तो न पब्लिक परेशां होती न प्रशासन हालाकान* !
उनका काम होता सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग की ट्रेनिंग और मोनिटरिंग करना और स्वास्थय सेवाओं पर ध्यान देना !
ये वार्ड स्तर पर समस्या हल कर देनेगे , इससे *पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप बनेगी, प्रशासन पर विश्वास बढेगा और पैनिक स्थिति निर्मित कभी भी नहीं होगी*, क्यूंकि स्थानीय स्तर पर ही उसे हल कर दिया जाएगा !
माल्स, सुपरस्टोर्स और किराना व्यापारियों को-ओर्दिनेट कर इसे आसानी से हल किया जा सकता है ! उन्हें खुलने की अनुमति दी जाए और *उसकी खबर जनता में दी जाए की इन असेंशियल सप्लाई को खोल दिया है आपके घर तक सामान समुचित पहुँचाने के लिए , आपको नहीं निकलना है सामान आप तक आएगा* ! बूथ स्तर की डिलीवरी से इनका काम आसान और गतिमान हो सकता है| जो नंबर डाल कर *अभी जनता में दिए गए हैं उनमें से एक भी नही उठ रहा यह विफलता है*।
भोपाल , जयपुर जैसे शहरों ने यह लाइफ लाइन खोल दी है और जनता में राहत है !
*समस्या नंबर ४ निजी क्षेत्र के डॉक्टर , नर्सिंग होम्स , अस्पताल और प्रशासन में तनातनी* ?
असमंजस की स्थिति है , डॉक्टर्स कह रहे हमें काम नहीं करने दिया जा रहा , प्रशासन कह रहा काम नहीं हो रहा , मरीज कह रहे उन्हें इलाज नहीं मिल रहा है , *सिर्फ मिसकम्युनिकेशन का परफेक्ट मामला है*!
प्रशासन को चाहिए की मेडिकल असोसिएशन , डॉक्टर्स के साथ बीत कर उनसे बात करें , प्राइवेट डॉक्टर्स को बूथस्तर पर नियुक्त करें उन्हें PPE किट्स और मास्क तथा प्राइमरी स्क्रीनिंग किट्स दे दे तो यह मामला हल हो जाए .
कुछ अस्पताल जो ग्रीन कैटेगरी के हैं उन्हें सब जगह IEC के माध्यम से और कॉल सेंटर के माध्यम से प्रचारित किया जाए |
यह एक दिन में हो सकता है!ताकि मामूली बीमारियों और कोरोना से अतिरिक्त मेडिकल सहायता और ईलाज शुरू रखा जाए | जो लोग बूथ से स्क्रीनिंग करा के आये हैं उन्हें ही यहाँ जाने की अनुमति हो|
प्रशासन ने जो निजी अस्पताल अधिग्रहीत किये हैं वे नाकाफी और टेम्परेरी हैं और यह महामारी जल्दी समाप्त होते नहीं दिख रही |
*इंदौर के डॉक्टर्स असोसिएशन को भी आगे आकर प्रशासन को कंधे से कंधा मिलकर खडा होना होगा और प्रशासन को भी प्राइवेट प्रेक्टि शनर्स पर भरोसा* |
इसके लिये अच्छे नागरिकों , पद्मश्री, पत्रकार के पैनल के।माध्यम से मध्यस्थता तत्काल करनी चाहिये। वे भी यहां के नागरिक हैं और सहयोग करना चाहते हैं। बस इस आत्मीय मीटिंग से काम बन सकता है।
५. *पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप नहीं दिखाई दे रही ! ये गुड कॉप बन सकते हैं !*
सामाजिक संगठन , वोलेंटियर्स, समज सेवक, इन्फ्ल्येंसर का नेटवर्क प्रशासन की बड़ी ताकत और मदद बन सकता है , दरकार है संवाद बनाने की ,यदि कलेक्टर चाहें तो हम पत्रकार इसका बीड़ा उठाकर उनकी मदद कर सकते हैं और शहर का पूरा सहयोग उन्हें मिल सकता है!
यह खाने पीने के सामन , राशन सप्लाई , कॉल सेंटर , लोडिंग वाहन , पैसे , बूथ लेवल पर बनाये जा सकने वाले हेल्प सेंटर्स और सोशल ब्रिज, जनता से संवाद और सबसे बड़ा लॉक डाउन का कड़ाई से पालन सभी में बेहद उपयोगी होगा !
*इंदौर के सोशल मीडिया इन्फ़्ल्युएन्सर्स को इस काम में लगाया जाए , उनसे बात की जाए उनके सुझावों को अमल में लाया जाया !*
आस पास के बड़े और मझले किसान अपनी साड़ी सब्जियां फ्री में देना चाहते हैं उसके लिए भी इन संगठनो की मदद से बूथ स्तर पर सप्ल्लाई कर प्रशासन न सिर्फ जनता की लाइफ आसन कर सकता है बल्कि एक आपदा प्रबंधन का एक सफल इंदौर मॉडल बना सकता है|
*हमारा प्रशासन , अधिकारी, जनता और डॉक्टर्स सभी 1 नम्बर हैं और हम फिर इस महामारी को हराने में हीरोज़ बन सकते हैं।* प्लीज़ कुछ कीजिये...
*यह अब भी संभव है* !