छोटे मझोले समाचार पत्र के प्रकाशकों को क्या विज्ञापन की रकम उनके स्वर्गवास के बाद दी जाएगी - फरकिया!


जंप कार्यालय में एक आवश्यक बैठक थी सभी जिम्मेदार पदाधिकारियों का आना जरूरी था, यह मीटिंग सिर्फ कार्यसमिति के सदस्यों के लिए थी आम सदस्यों के लिए नहीं थी | अतः ज्यादा भीड़भाड़ की उम्मीद नहीं थी लेकिन फिर भी 25 से 30 व्यक्ति कार्यालय पहुंचे | जब एक सदस्य ने प्रमाण देते हुए कहा कि मुझे पिछले साल का विज्ञापन प्रकाशित का पैसा आज तक नहीं मिला है और मेरी स्थिति अभी ठीक नहीं है | उसने वर्तमान पासबुक दिखाते हुए कहा कि आज तक मेरे खाते में पैसा नहीं आया है |


कई सदस्यों की अलग-अलग समस्याएं थी सभी को गंभीरता से सुना गया | सभी का कुछ ना कुछ हल किया जाएगा कई सब्जियों और फल के लिए परेशान थे , कई दवाइयों के लिए कई पैसे के लिए , कई आने जाने के लिए , किसी के पास परिचय पत्र घूम गया , वगैरह....वगैरह | सैकड़ों अपनी परेशानियों स्थानीय नेताओं को बता रहे थे | लेकिन जैसे ही सदस्य ने अपनी पासबुक की जानकारी दी फरकियाजी ने तुरंत भोपाल टेलीफोन करके कहा कि इस बात की चिंता नहीं करूंगा कि अभी कोरोना फैल रहा है और अभी कर्फ्यू है हम इस समय भी निकल सकते हैं | लेकिन वो हंगामा करूंगा कि पूरा विश्व याद रखेगा , डेढ़ - डेढ़ साल हो गया है लोगों का पैसा चुका है ....कुछ शर्म है |


अधिकारियों ने तुरंत पैसा जारी करने के निर्देश दिए बैठक तयशुदा से ज्यादा समय तक चलती रही | सबसे बड़ा  आश्चर्य यह था कि जलपान की व्यवस्था कहां से करें ना कोई होटल , ना कोई दुकान, मकान मालिक के घर ही चाय बनवाई गई |नजदीक से बिस्किट मंगवाए गए और सदस्यों को वितरित किए गए | अजीब विडंबना देखिए कि 18 महीने बाद भी समाचार पत्र के मालिक को उसके विज्ञापन की राशि नहीं मिली क्योंकि वह छोटा मझोला है उसकी आवाज इतनी दूर तक शीघ्र ही नहीं पहुंच रही |


अधिकारियों की मानसिकता समझ से परे है....!