धर्म एकता का द्योतक है |

 धर्म से किसी व्यक्ति का क्या आशय  है ? धर्म हर व्यक्ति का होता है| हर व्यक्ति कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप से अपने धर्म को निभाते चला आ रहा है | यह बात आज की नहीं अपितु हजारों वर्षों से निभा रहा है धर्म केवल मान्यताएं हैं जो हजारों वर्षों पूर्व हम ही में से किसी व्यक्ति के द्वारा बताइए या चलाई जा रही है|


मेरे अनुसार जिस व्यक्ति ने अपने कर्म को धर्म मान लिया वह व्यक्ति सफल है कई बार हम धर्म-कर्म में उलझे रहते हैं हमें धर्म-कर्म में ना उलझ कर बल्कि उन दोनों में  सामंजयस की  स्थिति बनाए रखना चाहिए|


जो व्यक्ति अपने धर्म को सर्वोपरि मानता है या अपने धर्म के प्रति कट्टरता फैलाता है ऐसी स्थिति में उसे सांप्रदायिकता कहते हैं |मनुष्य को सांप्रदायिक ना होकर बल्कि एकता दिखानी चाहिए बड़े बुजुर्गों ने सही कहा है


"मनुष्य वही है जो मनुष्य के लिए मरे "!


उपर्युक्त पंक्ति दर्शाती है कि मनुष्य को मनुष्यता दिखानी चाहिए | किसी व्यक्ति का जन्म इस संसार में इंसान के रूप में हुआ है जिस व्यक्ति ने "इंसानियत को नहीं समझा वह क्या अपने धर्म को समझेगा" उस व्यक्ति के लिए क्या राम -क्या रहीम , क्या मंदिर -  मस्जिद!


अंत में इतना कहना चाहूंगा कि मंदिर-मस्जिद की लड़ाई में इंसान खो चुका है वह अपने आप को भूल गया है उससे बेहतर तो जानवर है मूक बधिर होकर भी अपना जीवन यापन एकता में रहकर कर रहे हैं | जय हिंद!