जिलाधीश मनीष जी को अपने दूसरे कार्यकाल में इतनी सफलता क्यों नहीं मिली ?

गुरुदेव आप तो अंतर्यामी है पूरेेेेे विश्व की  राजनीति का ज्ञान है आप तो तीनों लोकों के ज्ञाता हैं एक कारण मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि , गुरुदेव मेरी जिज्ञासा शांत करें , गुरुदेव मेरे दिन का चैन और रात की नींद  हराम हो गई है | गुरुदेव मनीष जी का दूसरा कार्यकाल सफल नहीं हुआ उन्हे इंदौर में  कोरोना संकट दूर करने  के लिए मुख्यमंत्री ने  विशेष तौर पर  भेजा था  फिर क्या कारण है इतनी देर हो गई | अधिकारियों का दावा था कि वे  15 से 20 दिन में  कंट्रोल कर लेंगे | गुरुदेव नारद बड़ी देर तक घुमक्कड़ को घूरते रहे  ना जाने क्यों दया आ गई  और घुमक्कड़ के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले , "घुमक्कड़ हमेशा ध्यान रखना  उपेक्षा  जिंदगी की हार का बहुत बड़ा कारण है"  चाहे राजनीति में हो या प्रशासनिक कार्य में  किसी  की भी उपेक्षा नहीं करना चाहिए किसी को दरकिनार नहीं करना चाहिए |या दूसरे शब्दों में कहा जाए  कि किसी को इग्नोर नहीं करना चाहिए हम देखते हैं कि देश में ,समाज में ,शहर में,  गांव में , कस्बों में , व्यक्ति को जिस से काम निकालना होता है  वह "खजूर" से भी मीठा बन जाता है | काम निकलने के बाद वह  ग्वारपाटा बन जाता है क्योंकि उसका काम निकल चुका है  वह यह नहीं जानता है  इतिहास अपने आप को दोहराता है  |समय पंख लग कर उड़ जाता है , कोने में बैठ कर रोता है  पश्चाताप करता है लेकिन उसका "अंह" अपनी गलती मानने को इनकार कर देता  है |


मैं कुछ समझा नहीं गुरुदेव, "सत्यानाशी ,करमजले , मनहूस ताजमहल किसनेे बनवाया था तू जानता है " | सुुुुना हैै देखा नहीं है ताजमहल बनाने वाले वो  मजदूर उन टापरों में रहतेे थे , जिस प्रकार ताजमहल बनानेे वालों को कोई नहीं जानता उसी प्रकार  हर व्यक्ति की जीत पर उसकी काबिलियत  के पीछे कई लोगों का  हाथ होता है | मनीष जी जब पहली बार इंंदौर  के नगर निगम के कमिश्नर बनकर आए थे , उनकी जीत में कई लोगों का  सहयोग था जब वे दूसरी बार कलेक्टर बनकर आए तो वही सब लोग उत्साह से  उन्हें  मिलने के लिए आए | लेकिन मनीष जी ने  कह दिया  कि मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है , जरूरत होगी  तो मैं तुम्हें बुला लूंगा | उन्होंने कह तो दिया लेकिन वह सब कार्यकर्ता  कुंठित हो गए  और अपने-अपने घर चले गए  अब वे बुलाने पर भी नहीं आते हैं  एक छोटी सी भूल ने इस शहर को नर्क बना दिया | तुझे एक बात और बता दूं  कि सत्यानाशी दिग्गी को भी  दूसरे कार्यकाल में सफलता नहीं मिली थी और उसे मिस्टर बंठाढ़ार नाम दे दिया गया था क्यों तुझे मालूम है | घुमक्कड़ नेे असहमति से सर हिलाया | गुरु देव नारद बोले दिग्गी की सरकार रिंग मास्टर के मजबूत कंधों पर टिकी हुई थी , आर.के शर्मा जैसे वरिष्ठ आईएएस अफसर उसका संचालन करते थे | दूसरे कार्यकाल में दिग्गी ने रिंग मास्टर की अनदेखी कर दी | शर्मा की जगह सिंह आए और जब ऊपर से नीचे तक सिंह ही सिंह है , सिंह मतलब राजा जब ऊपर से नीचे तक राजा ही राजा थे  तो प्रजा का ध्यान कौन रखेगा  रिंग मास्टर ने कभी अपनी बात का बुरा नहीं माना |महाभारत में जो भूमिका विदुर ने निभाई थी वह निभाते रहे  और समझाते रहे |


उन्होंने अपने चेले और मित्र की बात का कभी बुरा नहीं माना राय मांगी तो दे दी  नहीं मांगी तो नहीं दी | रिंग मास्टर अपने हाल में मस्त रहे,  वे उस कार्यकाल में लोकसभा का चुनाव लड़े जबकि समस्त नजदीकी रिश्तेदारों  ने मना कर दिया था कि आप बुरी तरह हार जाएंगे | लेकिन उन्होंने कहा कि मैं राजा को मना नहीं कर सकता और उन्होंने हार स्वीकार कर ली | लेकिन सच्चे मित्र ने कभी यह नहीं कहा कि यहां तुम गलत हो उन्हें अपना भूल का अहसास होता रहा  और हो गया और भोपाल की हार ने उन्हें बुरी तरह हिला दिया.........तो घुमक्कड़ यह है कड़वी सच्चाई | रिंग मास्टर तेरे रिश्तेदार है तेरी हमेशा उनसे मुलाकात होती रहती है  पर मैं जानता हूं कि तू पूछने का एहसास नहीं करेगा और मैं जानता हूं कि वह यह अखबार पढ़ते हैं  और नियमित पढ़ते हैं यही कॉलम पढ़ते हैं  और मंगवा कर पढ़तेे हैं नहीं मिले तो वह अपने आप ही पढ़ लेंगे.......


जी गुरुदेव करके घुमक्कड़ अपने स्थान को लौट गया .......|